छठ पर्व में भी पटाखे से दूरी, सेहतमंद रहने के लिए जरूरी

– वायु प्रदूषण व नमी के चलते जहरीला धुआं इर्द-गिर्द रहकर पैदा कर सकता है दिक्कत
– साँसों के साथ ही फेफड़ों को प्रभावित कर कई बीमारियों को दे सकता है आमन्त्रण
गोरखपुर, 16 नवम्बर-2020 । कोविड-19 के दौर में पड़ने वाले त्योहारों में लोगों को सुरक्षित बनाने का हरसंभव प्रयास सरकार के साथ ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी किया जा रहा है । दीपावली पर पटाखे जलाने की सदियों पुरानी परम्परा के अलावा छठ पर्व पर भी पटाखों को जलाने का चलन है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो इस पर्व का उल्लास भी दीपावली सरीखा ही होता है, जिसमें जम कर आतिशबाजी भी की जाती है। कोविड काल में यह उल्लास बना रहे इसके लिए पटाखों के प्रति सतर्क और संयमित रहना होगा।
इस बार छठ पर्व में भी पटाखों नजरंदाज करके ही समुदाय को सेहतमंद बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभा सकते हैं । इस समय वायु प्रदूषण और नमी की जद में प्रदेश के अधिकतर जिले हैं, ऐसे में पटाखे का जहरीला धुआं उड़कर ऊपर न जाकर नीचे हमारे इर्द-गिर्द ही रहकर सांसों के साथ ही फेफड़ों को भी प्रभावित कर सकता है । इसलिए सांस लेने में तकलीफ पैदा करने वाले कोरोना के साथ ही अन्य कई बीमारियों से बचने के लिए भी इस बार पटाखों से दूरी बनाने में ही सभी की भलाई है । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लखनऊ समेत प्रदेश के 13 अधिक प्रदूषण वाले जिलों में पटाखे जलाने पर रोक लगा रखी है ।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी का कहना है कि पटाखों के चन्द सेकेण्ड के धमाकों व तेज रोशनी के लिए की जाने वाली आतिशबाजी से निकलने वाले जहरीले धुंएँ में कई तरह के खतरनाक रासायनिक तत्व मौजूद होते हैं जो पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ ही शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं । इसके धुएं में मौजूद कैडमियम फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा को कम करता है । इसके अलावा इसमें मौजूद सल्फर, कॉपर, बेरियम, लेड, अल्युमिनियम व कार्बन डाईआक्साइड आदि सीधे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं । कोरोना ने सांस की तकलीफ वालों को ज्यादा प्रभावित किया है, इसलिए पटाखे का धुआं श्वसन तंत्र को प्रभावित कर कोरोना की गिरफ्त में न ले जाने पाए, उसके लिए पटाखे से दूर रहें ।
डॉ. श्रीकांत तिवारी का कहना है कि पटाखों से निकलने वाला धुआं वातावरण में नमी के चलते बहुत ऊपर नहीं जा पाता है, जिससे हमारे इर्द-गिर्द रहकर सांस लेने में परेशानी, खांसी आदि की समस्या पैदा करता है । दमे के रोगियों की शिकायत भी बढ़ जाती है । धुंए के कणों के सांस मार्ग और फेफड़ों में पहुँच जाने पर ब्रानकाइटिस और सीओपीडी की समस्या बढ़ सकती है । यह धुआं सबसे अधिक त्वचा को प्रभावित करता है, जिससे एलर्जी, खुजली, दाने आदि निकल सकते हैं । पटाखे की चिंगारी से त्वचा जल सकती है । पटाखों से निकलने वाली तेज रोशनी आँखों को भी नुकसान पहुंचाती है । इससे आँखों में खुजली व दर्द हो सकता है , आँखें लाल हो सकती हैं और आंसू निकल सकते हैं । चिंगारी आँखों में जाने से आँखों की रोशनी भी जा सकती है । पटाखों का तेज धमाका कानों पर भी असर डालता है । इससे कम सुनाई पड़ना या बहरापन की भी दिक्कत पैदा हो सकती है ।
इन जिलों में पटाखे की बिक्री व इस्तेमाल पर है रोक :
प्रदेश के सर्वाधिक प्रदूषण की चपेट वाले जिलों में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) न्यायालय ने 30 नवम्बर तक रोक लगा रखी है, इनमें शामिल हैं – लखनऊ, कानपुर, आगरा, मेरठ, मुजफ्फरनगर, वाराणसी, हापुड़, गाजियाबाद, मुरादाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, बागपत और बुलंदशहर ।
सेनेटाइजर लगे हाथों कदापि न छुएं पटाखें :
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि कोरोना काल में सेनेटाइजर लगे हाथों से पटाखे जलाना और यहाँ तक कि छूना भी मुसीबत में डाल सकता है क्योंकि अल्कोहल युक्त सेनेटाइजर पटाखों में मौजूद बारूदों के संपर्क में आकर धमाका कर सकता है । इसलिए छठ पर्व पर भी पटाखों से वैसे दूर रहने की पूरी कोशिश कीजिये, यदि आतिशबाजी करते ही हैं तो जरूरी सावधानी का भी ख्याल रखें । आतिशबाजी के बाद नाक, मुंह व आँख को कदापि न छुएं और अच्छी तरह से साबुन-पानी से हाथ को धुलें ।